चीनी मिलों व उसके दूषित जल का मानव, जीव जंतु एवं पर्यावरण पर प्रभाव
इस लेख में शारदा नदी किनारे बसे समुदायों के समीप शुगर मिलों द्वारा निष्काशित किये गये दूषित जल के जल संसाधनों, मानव एवं जलीय जीव जंतुओं पर पड़ने वाले नकारात्मक प्रभाव के बारे में अनुभव साझा किया गया है।
ग्राम - सरखना पूरब
ग्राम पंचायत - सरखना पूरब
तहसील - पलिया कलां
जिला - लखीमपुर खीरी
नमस्कार मेरा नाम विजय शंकर है, मैं ग्राम सरखना पूरब पोस्ट बिजौरिया तहसील पलिया जिला लखीमपुर खीरी, उत्तर प्रदेश का रहने वाला हूँ। मैंने 2019 में समाजशास्त्र से पोस्ट ग्रेजुएशन किया है इसके साथ ही जी.डी.एस. संस्था द्वारा क्रियान्वित ट्रोसा परियोजना में एक सामुदायिक कार्यकर्ता के रुप में अगस्त 2017 से कार्य कर रहा हूँ। ट्रोसा परियोजना अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत व नेपाल के समुदाय के साथ मिलकर नीतिगत स्तर से बदलाव कर एक बेहतर जल प्रशासन व्यवस्था लागू करने के उद्देश्य से कार्यरत है इस परियोजना के अन्तर्गत मिले जमीनी स्तर के अनुभव को मैं इस लेख के माध्यम से आप लोगों से साझा करने जा रहा हूँ इस लेख के माध्यम से हम शुगर मिलों द्वारा किए जा रहे प्रदूषण एवं उसके प्रभावों का आंकलन करेंगे।
चीनी मिलों का परिचय - पलिया कला में दो चीनी मिलें हैं जिनके द्वारा पलिया, सम्पूर्णानगर, खजुरिया, भीरा, मझगई से दुबहा तक का गन्ना क्रय कर चीनी का उत्पाद किया जाता है। इन चीनी मिलों की 24 घन्टे में पेराई की क्षमता 2 लाख 10 हजार कुन्टल है।
पलिया ब्लॉक में 104 ग्राम आते हैं, जिनमें से लगभग 80 प्रतिशत में गन्ने की बुवाई की जाती है, जिसका मुख्य कारण है कि पलिया क्षेत्र शारदा नदी के किनारे बसा हुआ तराई क्षेत्र है। थोड़ी सी बरसात होने पर खेतों में जल भराव हो जाता है जिससे गेहूँ, धान, आलू के साथ अन्य फसलें नष्ट हो जाती हैं। इस (गन्ना) फसल में थोड़ा बहुत जल भराव की समस्या होने पर फसल को ज्यादा क्षति नहीं पहुँचती है, जिससे पलिया क्षेत्र के किसान अधिकतम संख्या में गन्ने की फसल की बुवाई करते हैं।
शुगर मिलों के अन्तर्गत होने वाले उत्पाद -
चीनी का उत्पाद: मिलों के द्वारा चीनी का उत्पादन भारी मात्रा में किया जाता है। पलिया कलां से चीनी उत्तर प्रदेश के साथ साथ देश के अन्य शहरों में भी विक्रय कि जाती है, जिसका मूल्य 34 रुपये प्रति कि.ग्रा. है।
जैविक खाद का उत्पादन: गन्ने की सफाई करने पर निकलने वाले कचरे से जैविक खाद बना दी जाती है। किसान गन्ने कि बुवाई करते समय इस खाद को अपने खेतों में डालते हैं जिससे भूमि की उपज क्षमता बढ़ती है। इस जैविक खाद को किसान 75 रुपये प्रति क्विन्टल के हिसाब से खरीदते हैं।
बैगास व खोई: चीनी मिल में गन्ने का रस निकालकर जो उसकी खोई बचती है उसको प्लाई बनाने के उपयोग में लाते हैं। अगर बाहर भी बेचना हो तो उसका मूल्य 280 रुपये प्रति क्विन्टल के हिसाब से है।
विद्युत ऊर्जा उत्पन्न करना: पलिया में कार्यरत एक बड़ी चीनी मिल के द्वारा 397 मेगावाट की बिजली उत्पन्न की जाती है, जिसको पलिया ब्लॉक के ग्रामों में वितरित किया जाता है, जिस हेतु ग्रामीण समुदाय के लोगों से लगभग 250 रुपये प्रति माह वसूली की जाती है।
चीनी मिल क्षेत्र: पलिया शुगर मिलों के द्वारा पलिया, सम्पूर्णानगर, खजुरिया, भीरा, मझगई से दुबहा तक का गन्ना क्रय कर चीनी का उत्पाद किया जाता है और मिल से करीब 15 कि.मी. की दूरी पर मिल द्वारा गन्ना सेन्टर बनाये गये है जिससे किसान अपने पास के सेन्टर पर गन्ने की तुलाई कर देते हैं। और सेन्टर के संसाधनों के द्वारा वह गन्ना लादकर पलिया चीनी मिल में लाया जाता है। यहां तक गन्ना लाने के लिए किसान को प्रति क्विन्टल के हिसाब से कुल गन्ना मूल्य में से 10 रुपये प्रति क्विन्टल के हिसाब से कटौती की जाती है।
शुगर मिलों का पर्यावरण पर प्रभाव: पलिया कलां चीनी मिल में गन्ने की पेराई नवम्बर माह से अप्रैल माह तक की जाती है। इसी समय में चीनी मिल के चिमनियों के द्वारा बहुत ही ज़हरीला धुआं निकलता है जो कि हमारे पर्यावरण को प्रदूषित करता है। साथ ही समुदाय के लोगों से मिलने के दौरान पता चला कि चीनी मिल से 3 कि.मी. की दूरी पर जितने भी ग्राम बसे हुए हैं उन ग्रामों में जिस समय गन्ना फैक्टरी संचालित रहती है उस समय धुएं के साथ राख भी आती है, जो राहगीरों के आंखों में पड़ जाती है और आंखों में जल प्रारम्भ हो जाता है और लोगों को डाक्टर के पास जाना पड़ता है। इसके साथ ही राख पड़ने के कारण बाहर कपड़े भी नहीं सुखा पाते है और घरों में भी गंदगी होती रहती है, जिससे विभिन्न प्रकार की बीमारियां उत्पन्न होती है, इस समस्या से रूबरू सब है परन्तु निस्तारण करने के लिए इसकी सुनवाई नहीं होती है।
शुगर मिलों से निकलने वाले प्रदूषित जल की गुणवत्ता एवं प्रभावित क्षेत्र: पलिया चीनी मिलों के द्वारा दूषित जल के निकास हेतु नालों की खुदाई की गयी जिसमें मिल से निकलने वाला दूषित जल को उसमें छोड़ा जाता है और यह नाले दो जगह से जाकर शारदा नदी के स्रोत में मिलता है, जिसके किनारे सैकड़ों ग्राम बसे हैं जैसे- पलिया खुर्द, बड़ा गांव, बेहनन पुरवा, पतवारा, बिजौरिया, खैराना, बबौरा, मझगई, चैरी कलां, नया पुरवा, खालेपुरवा इत्यादि। इन ग्रामों में समुदाय के लोगों से मुलाकात के दौरान निकलकर आया कि चीनी मिलों के द्वारा नाला निकाला गया है जिसमें बहुत ही प्रदूषित जल आता है और यह जल रसायन युक्त होता है। इन तथ्यों को के आधार पर ग्राम के युवा समूह के सदस्यों ने जल जांच मशीन के द्वारा शुगर मिलों के नाले में आने वाले जल नमूने की जांच कर शुद्ध पेय जल के मानकों से मिलान किया गया जिसका परिणाम इस प्रकार से निकलकर आया।
चीनी मिल के नाले का जल नमूना जांच विवरण-
पैरामीटर
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मापक इकाई
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शुद्ध जल गुणवत्ता मानक
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मिल के द्वारा छोड़े जाने वाले जल का परिणाम
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प्रभाव
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तापमान
(Temperature)
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सेल्सियस
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25
|
29
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यह तापमान का जल जलीय जीवों के लिए हानिकारक होता है इस जल में वह जीव ग्रोथ नहीं कर सकते हैं।
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टी.डी.एस.
(T.D.S.)
|
पी.पी.एम.
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150-300
|
630
|
ज्यादा टी.डी.एस वाला जल पीने से पित्ताशय, गुर्दे, यूरेटर में पथरी की समस्या उत्पन्न होने की संभावना अत्यधिक होती है।
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पी एच
(pH)
|
|
6.5-8.5
|
4.78
|
जल में पी एच मान कम होने पर वह जल अम्लीय हो जाता है, जिससे वह जल में तेजाब की मात्रा विकसित कर देता है यह जल कृषि सिंचाई योग्य भी नहीं होता है।
|
मैलापन
(Turbidity)
|
एन.टी.यू.
|
0-10
|
26
|
जल अगर मानक से ज्यादा गंदा हो तब वह पीने योग्य नहीं होता है, जिससे त्वचा एवं गुर्दा सम्बन्धित रोग होने की ज्यादा संभावना रहती है।
|
इसके पश्चात ग्राम के सदस्यों ने बताया कि हमारे ग्राम के किनारे से जो नाला बहता है, कई जगह पर उसकी गहराई 10 से 15 फिट है और हमारे यहां का तो भूमिगत जल स्तर ही 25 फिट पर है, जिससे यह नाले का जल सीधे भूमिगत जल को प्रभावित कर रहा है। चीनी मिलों से निकलने वाले नाले के किनारे जितने भी ग्राम बसे हुऐ हैं उनका मुख्य पेय जल स्त्रोत हैंडपम्प है जोकि 25 से 30 फिट की गहराई पर लगा होता है। समुदाय के लोगों ने आपस में मिलकर युवा समूह के माध्यम से जल जांच मशीन के द्वारा अपने पेय जल स्त्रोत की जांच की जिसका विवरण इस प्रकार से है।
चीनी मिलों के किनारे बसे ग्राम में जल नमूना जांच विवरण-
ग्राम का नाम
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जल संसाधन मालिक का नाम
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हैंडपम्प की गहराई
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टी.डी.एस.
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पी एच
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मैलापन
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बड़ा गांव
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हाजिरा बानो
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31
|
448
|
4.48
|
17
|
बड़ा गांव
|
साबिरा बानो
|
29
|
410
|
9.27
|
17
|
चैारी कलां
|
मंजू देवी
|
25
|
973
|
4.5
|
15
|
चैारी कलां
|
तेजराम
|
27
|
864
|
4.6
|
14
|
जिस भी ग्राम के किनारे से चीनी मिलों का नाला निकला है, उन ग्रामों के हैंडपम्प जोकि पेय जल का स्त्रोत है उनमें वही अव्यय घुलित मिल रहे हैं जो कि चीनी मिलों के जल जांच नमूने में प्राप्त हो रहे हैं जिससे यह साफ हो जाता है कि चीनी मिल के नाले के द्वारा हमारे भूमिगत जल को प्रदूषित कर रहा है।
इसके पश्चात ऐसे ग्रामों के हैंडपम्पों का जल नमूना परीक्षण किया जो ग्राम इन चीनी मिलों से 10 से 20 कि.मी. की दूरी पर बसे हुए हैं जैसे- श्रीनगर, निबुआ बोझ, अतरिया आदि।
जिन ग्रामों के किनारे चीनी मिलों का नाला नहीं निकला है उस ग्राम का जल नमूना जांच विवरण-
ग्राम का नाम
|
जल जांच नमूना विवरण
|
हैंडपम्प की गहराई
|
टी.डी.एस.
|
पी एच
|
मैलापन
|
श्रीनगर
|
सरस्वती देवी
|
25
|
255
|
6.5
|
11
|
निबुआ बोझ
|
जहरुनिशा
|
27
|
311
|
6.2
|
5
|
अतरिया
|
ज्योती
|
22
|
255
|
6.1
|
8
|
श्रीनगर, निबुआ बोझ, अतरिया शुगर मिल के नाले से 7 कि.मी. से भी अधिक दूरी पर बसे हुऐ है इन ग्रामों में जल जांच परिणाम के अनुसार यह जल का स्वच्छता स्तर सही है और यह पेय जल मानक के अनुसार इस जल को पीने से किसी भी प्रकार का नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ेगा।
चीनी मिलों के नाले द्वारा हमारे जल संसाधनों पर पड़ने वाला प्रभाव -
शारदा नदी पर पड़ने वाला प्रभाव: शारदा नदी का उद्गम स्थान धारचूला घाट है और यह महसी ब्लॉक बहराइच में घाघरा नदी में मिल जाती है। घाघरा नदी आगे चलकर बिहार के छपरा जिले में गंगा में मिल जाती है इसलिए इसे गंगा बेसिन क्षेत्र के नाम से जाना जाता है। शारदा नदी एक पर्वतीय नदी है यह अपने साथ पहाड़ों से उपजाऊ मिट्टी एवं कई प्रकार की जड़ी बूटियों से स्पर्श होकर आती है इसलिए इसकी जल धारा निर्मल और स्वच्छ होती है। हिन्दू धर्म में इसे शारदा, गंगा माता एवं अन्य कई नामों से पुकारते और समय समय पर शारदा नदी तट पर मेले भी लगते है जिसमें लोग गंगा स्नान कर रोगमुक्त होते हैं। शारदा नदी को लोग जीवनदायिनी के रुप में मानते हैं कि अगर हम शारदा नदी तट के किनारे न बसे होते तो हमारा जीवन बहुत ही कष्टदायक होता, इस प्रकार शारदा-महाकाली नदी के किनारे बसे समुदाय के लोग अपना जीवन यापन करते हैं। परन्तु कुछ निजी संस्थाओं ने अपने निजी फायदे के लिए मानक से भी ज्यादा भूमिगत का दोहन कर रहीं हैं, जैसे चीनी मिलों के द्वारा शारदा नदी के मुख्य जल स्त्रोत में अपना प्रदूषित जल छोड़ रही है जिससे जल के साथ जल में रहने वाले जीव जंतु नष्ट हो जाते हैं। आइये हम इन तथ्यों को उदाहरण से समझते हैं कि शारदा नदी का जल किस प्रकार से प्रदूषित हो रहा है।
यह परीक्षण युवा समूह के सदस्यों के द्वारा किया गया जिसमें सबसे पहले शारदा नदी (अक्षांश (Latitude) 28.38524 देशान्तर (Longitude) 80.55645) समीप श्रीनगर शारदा पलिया मिल से 07 कि.मी. की दूरी पर है। नदी के इन स्थानों पर चीनी मिलों का प्रभाव किसी प्रकार से नहीं पड़ता है। और ग्राम चैारी कलां के पास (अक्षांश (Latitude) 28.33562 देशान्तर (Longitude) 80.64489) चीनी मिलों का नाला सीधे जाकर नदी के जल स्रोत में मिलता है शारदा नदी के इन दोनों तट से शारदा नदी का जल नमूना लेकर जल जांच मशीन के द्वारा जल गुणवत्ता की जांच की गयी जिसका परिणाम इस प्रकार निकलकर आया।
श्रीनगर ग्राम के पास शारदा नदी तट के जल नमूने की जांच का परिणाम विवरण -
ग्राम चैारी कलां जहां पर एक चीनी मिल का नाला शारदा नदी जल स्त्रोत में मिलता है उस स्थान का जल नमूना जांच परिणाम विवरण -
ग्राम का नाम
|
पी एच (गुणवत्ता मानक)
|
पी एच (परिणाम)
|
चैारी कलां
|
6.5-8.5
|
6.79
|
श्रीनगर के समीप शारदा नदी के तट में जल जांच नमूना में मानक से अधिक केवल मैलापन पाया गया बाकी तत्व मानक के अनुसार निकलकर आये।
ग्राम का नाम
|
पी एच (गुणवत्ता मानक)
|
पी एच (परिणाम)
|
चैारी कलां
|
6.5-8.5
|
4.6
|
चीनी मिलों से निकलने वाला नाले का जल शारदा नदी जल स्त्रोत में मिलने के बाद जल नमूने की जांच की गयी जिसमें जल में घुलित तत्व मानक के अनुसार नहीं प्राप्त हुऐ।
टेम्परेचर
|
टी.डी.एस.
|
सेलिनिटी
|
टरबिडिटी.
|
डी.ओ.
|
कन्डक्टिविटी
|
|
मानक: 150-300
|
मानक: 0.5- 0.30
|
मानक: 1-10
|
मानक: 4-7
|
मानक - 400 म्यू.एस से कम
|
17.8
|
266
|
0.23
|
16
|
5.5
|
304
|
29
|
427
|
0.97
|
23
|
3.2
|
623
|
उपरोक्त जल जांच के परिणाम के आधार पर हमने देखा की श्रीनगर के पास शारदा नदी के तट पर किसी भी प्रकार का शुगर मिलों के द्वारा प्रभाव नहीं पड़ रहा है। उस जल में मानक के अनुसार घुलित तत्व मिले जो हमारे स्वास्थ्य के लिए हानिकारक नहीं है। दूसरी तरफ हमने चैारी कलां ग्राम के किनारे बह रही शारदा नदी जल स्त्रोत से जल नमूने की जांच की जहां पर शुगर मिलों का रसायन युक्त पानी शारदा नदी में जाकर सीधे मिलता है, जिसके जल जांच परिणाम के अनुसार वह जल विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानक के अनुसार बिल्कुल सही नहीं है। शारदा नदी के दोनों तटों पर जल परीक्षण करने के बाद यह साफ हो जाता है कि शारदा नदी में जहां पर चीनी मिलों का जल जाकर मिल जाता है वहां से शारदा नदी के जल में प्रदूषण का स्तर बढ़ जाता है और वह जल बहता हुआ कई ग्रामों से गुजरता है और घाघरा नदी में जाकर मिल जाता है नीचे बसे समुदाय को प्रभावित तो करता ही है और शारदा नदी से अन्य जुड़ी नदियों में भी प्रदूषण का स्तर बढ़ता है। आइये अब हम देखते है कि नदी के पारिस्थितकीय तंत्र में कैसे विघ्न पड़ता है।
शुगर मिलों का प्रदूषित जल रासायन युक्त होने के कारण जब शारदा नदी में जाकर घुलता है तो यह जल शुद्ध पेय जल में घुलित मानकों को प्रभावित कर देता है और उन तत्वों को मानक के अनुसार से कम या ज्यादा कर देता है जोकि नदी के माध्यम से हमारे भूमिगत जल को भी प्रभावित करता है, जिससे हमारे नदी बेसिन में बसे लोगों को स्वच्छ जल का अभाव रहता है। साथ ही यह जलीय जीवन के लिए बहुत की घातक है, आइये विस्तार से समझते हैं।
चीनी मिलों के दूषित जल का जलीय जीवों पर प्रभाव -
जिस प्रकार प्रदूषित जल से मनुष्य स्वास्थ्य नहीं रह पाते हैं ठीक उसी प्रकार से जीव जंतु के जीवन के लिए स्वच्छ जल की आवश्यकता होती है। मछलियों को एक बहुत बड़े आजीविका संसाधन के रुप में देखा जाता है। शुगर मिलों के जल का पीएच मान 5 के आस पास होता है जिससे यह जल अम्लीय हो जाता है और इसमें एसिडिक की मात्रा बढ़ जाती है, साथ ही जल में घुलित आक्सीजन का स्तर बहुत ही कम होता है जिससे जलीय जीव को आक्सीजन नहीं मिल पाती है। जल में रासायनिक पदार्थों के मिश्रण से टी.डी.एस का स्तर बढ़ जाता है इसके साथ ही जल के घुलित तापमान एवं जल में मैलापन की मात्रा अत्यधिक हो जाती है। इस स्थिति में चीनी मिलों के नाले के पानी में कुछ प्रजाती की मछलियां 24 घण्टे से ज्यादा जीवित नहीं रह पाती है और जब यही जल शारदा नदी के जल स्त्रोत में जाकर मिलता है शारदा नदी में जल ज्यादा होने के कारण यह जल नदी के जल में मिश्रित हो जाता है और इसका प्रभाव कम हो जाता है। लेकिन ये फिर भी जलीय जीवन के लिए सही नहीं होता है। यह नदी की मछलियों को बीमार कर देता है इसके साथ ही मछुवारा समुदाय के लोगों ने बताया कि मछलियां प्रजनन की क्षमता खो देती हैं एवं जब अण्डे देती है, नदी का जल प्रदूषित होने के कारण अण्डे नष्ट हो जाते है क्योंकि उनमें प्रदूषित जल का प्रभाव सहन करने की क्षमता नहीं होती है जिससे नदी में दिन पर दिन मछलियों की संख्या कम पड़ती जा रही है, जिससे मछुवारा समुदाय के जीवन पर प्रभाव पड़ रहा है जिसका विवरण इस प्रकार से है।
मछलियां न मिलने के कारण मछुवारा समुदाय प्रभावित हो रहा है: ग्राम बबौरा, सरखना पूरब, नया पुरवा, खालेपुरवा, मझगई श्रीनगर, इत्यादि ग्रामों में समुदाय के लोगों से मिलकर पेशेवर मछुवारा समुदाय की खोज करने पर पता चला की अब इन ग्रामों में ऐसे परिवार नहीं हैं जोकि पेशेवर मछली मारते थे। समुदाय के लोगों से इसका कारण जानने के बाद पता चला की आज से 20 वर्ष पूर्व शारदा नदी में स्वच्छ जल की धारा बहती थी और 12 महीने मछलियां पर्याप्त मात्रा में मिल जाती थी परन्तु जैसे शारदा नदी में जल प्रदूषण का स्तर बढ़ता गया उसी प्रकार से नदी में मछलियों की कमी होने लगी जिससे समुदाय के लोगों को पर्याप्त मात्रा में मछलियां नहीं मिल पाती थी और मछुवारा समुदाय के लोगों के परिवार का ठीक से भरण पोषण नहीं हो पाता था। इस स्थिति को देखते हुऐ मछुवारा समुदाय को यह लगने लगा की अब मछलियों को पकड़कर बाजार में बेचने से गुजारा नहीं होगा क्योंकि आवश्यकता अनुसार मछलियां मिलती नहीं हैं जिससे उनके द्वारा अन्य कार्य किया जाने लगा परन्तु मछुवारा समुदाय के लोगों को तो केवल मछलियों को मारने में ही निपुणता थी जिससे उनको दूसरे कार्य को ठीक प्रकार से करने व समझने में काफी समय लगा इस बीच उनके परिवार की स्थिति ज्यादा ही बिगड़ गयी जिससे उनके नाबालिग बच्चे स्कूल छोड़कर एवं महिलाएं मजदूरी करने लगी जिससे परिवार का ठीक से भरण पोषण हो सके, और आज के समय में मछलियों का अभाव होने के कारण समुदाय के सदस्य अपने खाद्य के लिए मछलियों को पकड़ते हैं और ज्यादा मिलने पर उन्हें बाजार में बेच लेते हैं या समुदाय के लोगों के पास समय होने पर वह मछलियों को मारने जाते हैं कि खाली बैठने से अच्छा है कि शायद कुछ मछलियों ही मिल जाये जिससे कुछ कमाई हो जाये। नदी आधारित आजीविका पर 95 प्रतिशत लोगों की निर्भरता नहीं देखने को मिलती हैं।
चीनी मिल के प्रदूषित जल का कृषि भूमि पर प्रभावः बाढ़ व बरसात के समय चीनी मिल के नाले से जल उफन कर आस पास के खेतों में भर जाता है भूमि को सिंचाई के लिए 7 पीएच मान वाले जल की आवश्यकता होती है जो फसल को किसी भी प्रकार का नुकसान नहीं पहुंचाता है और चीनी मिल के द्वारा निकलने वाले जल का पीएच मान 4 से 5 के आस पास होता है जोकि अम्लीय होता है, जिस जल में एसिडिक की भी मात्रा पाई जाती है। जब यह नरम फसलों जैसे गेहूँ, धान, दालें, आलू इत्यादि में जाकर जमा हो जाता है तो यह फसल को जड़ से गला कर 20 से 25 दिनों में पूरी तरह नष्ट कर देता है। दूसरी तरफ गन्ने में ज्यादा प्रभाव नहीं डालता अगर 1 माह से ज्यादा। यह जल गन्ने में ठहरता है तो यह गन्ने की फसल को सुखाना प्रारम्भ कर देता है और धीरे धीरे पूरी तरह सुखा देता है जिससे हर साल निचले स्तर में खेती करने वाले किसानों को भारी मात्रा में हानि होती है। ग्राम पतवारा, बबौरा, चैरी कलां, सरखना पूरब, बड़ा गांव, नया पुरवा बिजौरिया, बेहनन पुरवा इत्यादि ग्रामों के किसान अत्यधिक प्रभावित होते हैं, इस जल का प्रयोग सिंचाई के लिए किया जा सकता है परन्तु कृषि विभाग के अधिकारियों की सलाह पर कब, कैसे, और कितने जल का प्रयोग करना है उसकी जानकारी लेने की बाद सिंचाई करने पर यह जल फसल के लिए लाभकारी सिद्ध होगा।
चीनी मिलों के प्रदूषित जल का ग्राम एवं समुदाय पर पड़ने वाला प्रभावः समुदाय के लोगों ने बताया कि बाढ़ आने पर चीनी मिलों के नालों का पानी ग्राम में भर जाता है इस जल में बहुत ही बदबू होती है जिससे समुदाय के लोगों को बाढ़ के चलते इसी जल के आस पास अपना समय व्यतीत करना पड़ता है। इसके साथ ही यह प्रदूषित जल घर में लगे पेय जल के हैंडपम्पों में प्रवेश करता है जिसके चलते ग्राम में स्वच्छ पेय जल की व्यवस्था न होने के कारण समुदाय के लोगों को उसी जल को पीना पड़ता है। साथ ही बाढ़ के समय ग्राम के पालतू जानवरों को इसी जल में दिन रात रहना पड़ता है जिससे जानवर कभी कभी बीमारियों का शिकार हो जाते हैं। और जब यह जल किसान के खेतों में जाकर भरता है तब फसल को प्रभावित तो करता ही है साथ ही जानवरों के चारे को बरबाद कर देता है। जो जानवर चारा खाते हैं उस चारे में यह प्रदूषित जल स्पर्श होने के बाद वह चारा बदबूदार हो जाता है और जानवर उसको सूँघकर छोड़ देते हैं इससे जानवरों के स्वास्थ्य पर बहुत प्रभाव पड़ता है।
चीनी मिलों के प्रदूषित जल का ग्राम के जल संसाधनों पर पड़ने वाला प्रभावः समुदाय के लोगों ने बताया कि जब यह नाला ग्राम के पास से नहीं निकला था तब ग्राम के जल संसाधन पूरी तरह से स्वच्छ रहते थे जिसका उपयोग हम जानवरों को पानी पिलाने एवं उनको नहलाने के साथ सिंचाई के उपयोग में लाते थे अगर हम आज की बात करें तो बाढ़ या भारी वर्षा होने पर शुगर मिलों के नालों का प्रदूषित जल हमारे ग्राम के पोखर, तालाबों एवं कुँओं में मिश्रित हो जाता है और बाढ़ तो चली जाती है परन्तु यह जल इन्हीं जल संसाधनों में ठहर जाता है जिससे तालाब के जल को पूरी तरह से प्रदूषित कर देता है। इसके बाद से इस जल में किसी प्रकार की मछलियां एवं अन्य जलीय जीव जंतु नहीं बचते हैं, धीरे धीरे पूरी तरह से अण्डे बच्चों के साथ नष्ट हो जाते हैं जिससे ग्राम आधारित आजीविका पूरी तरह नष्ट हो जाती है। इसके साथ ही वह जल सिंचाई एवं जानवरों को पानी पिलाने के लायक भी नहीं रह जाता है और इसी प्रकार तालाबों से समुदाय के लोगों की निर्भरता धीरे धीरे खत्म होती जा रही है और तालाब अपना अस्तित्व खोते जा रहे हैं।
चीनी मिलों के प्रदूषित जल से मानव स्वास्थ्य पर पड़ने वाला प्रभावः- चीनी मिलों का नाला जिन ग्रामों के किनारे से होकर गुजरता है उन ग्राम के सदस्यों ने बातचीत के दौरान अपनी समस्या बताई कि हमारे ग्राम के किनारे जब से शुगर मिलों का नाला निकला है जिसमें रासायन युक्त प्रदूषित जल बहता है साथ ही समुदाय के सदस्यों ने बताया कि हम लोगों को 25 से 30 फिट पर आसानी से पानी मिल जाता है जिससे पेय जल हैंडपम्पों की कुल गहराई इतनी ही होती है और शुगर मिलों के नाले की गहराई कई जगहों पर 10 फिट से भी ज्यादा है जो हमारे भूमिगत जल को प्रदूषित करता है जिससे हमारे हैंडपम्पों से प्रदूषित जल ही निकलता है हैंडपम्प के जल को ध्यान से देखने पर प्रदूषण के रेशे नग्न आंखों से ही दिखाई देते है इसके साथ ही समुदाय के लोगों ने नाले के किनारे बसे लोगों के एक ही जैसी होने वाली बीमारी के बारे में बताया जैसे- पथरी, दाद, खुजली के साथ त्वचा संबंधित रोग, आंखों में पानी, बच्चों में डायरिया बनना इत्यादि।
समुदाय के सदस्यों से निकलकर आया कि जो लोग प्रदूषित नाले के किनारे बसे हुऐ हैं वह बहुत ही दबे कुचले मजदूर वर्ग के लोग हैं जो अपनी दिनचर्या की कमाई से अपने परिवार का भरण पोषण ही कर पाते हैं। इन बीमारियों के चलते वह बहुत ही आर्थिक तंगी से गुजरते हैं बीमारी के समय वह अपने परिवार को देखे या फिर कमाने जाये कभी कभी पैसे नहीं होने के कारण बीमार व्यक्ति का ठीक प्रकार से इलाज नहीं हो पाता है और उस व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है।
इन तथ्यों को और अच्छे से समझने के लिए उन परिवारों से मुलाकात की जो इन हालातों से गुजर रहे हैं उन सदस्यों से बातचीत के दौरान निकलकर आया कि उनके परिवार में हमेशा किसी न किसी व्यक्ति का बीमारी के चलते इलाज ही चलता रहता है और वह आर्थिक तंगी से गुजरते रहते हैं। जब समुदाय के लोगों से बीमारी का कारण पूछ गया तो कुछ लोगों को यह ही जानकारी नहीं है कि यह समस्या इनके पेय जल स्त्रोत से हो सकती है जिसका कारण दूषित पानी हो सकता है उन परिवार के सदस्यों को उनके पेय जल स्त्रोत की जल जांच मशीन के द्वारा जांच कर पेय जल की गुणवत्ता का आकलन करवाया गया साथ ही विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा निर्धारित पेय जल के मानकों के आधार पर प्रदूषित जल के प्रभावों के बारे में चर्चा कर होने वाली बीमारियों के बारे में जानकारी देकर जागरूक किया गया।
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